मेरी उदासी मुझसे रोज़ मिलने आती हैं,
मुस्कुराकर हर बार उसे रूखसत कर देता हूँ।
सुकून की तलाश में निकले थे हम,
तो दर्द बोला.. औकात भूल गए क्या।
अब मै थक गयी हूं,
हवा से कह दो बुझा दे मुझे।
झूठी हँसी से जख्म और बढ़ता गया,
इससे अच्छा तो खुल कर रो लिए होते।
मिलकर भी उनसे हसरत-ए-मुलाकत रह गई,
बादल तो घर आये थे, बस “बरसात” रह गई।
ये किस मकाम पर जिंदगी मुझको लेके आ गयीं,
ना बस खुशी पे है जहाँ, ना गम पे इख़्तियार हैं।
था नही तकदीर में क्यूँ राह में आया,
क्या बिगाड़ा था तेरा निगाह में आया।